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मुलायम सिंह यादव सियासत में चरखा दांव का महारथी

आजाद भारत में उत्तर प्रदेश की राजनीति ने जिस मोड़ से अपना रास्ता बदला मुलायम सिंह यादव हमें वही खड़े दिखाई देते हैं। व पिछड़े वर्गों की आकांक्षाओं के प्रतीक बने, साथ ही मुलायम सिंह की राजनीति का एक ऐसा समीकरण रखने का श्रेय भी जाता है जिसके आगे पुराने सारे समीकरण फीके पड़ गए। इनमें चाहे जनता पार्टी को तोड़ना हो या सरकार बनाने के लिए बहुजन समाज पार्टी को साथ जोड़ना हो। अखाड़े की मिट्टी में बढ़े हुए मुलायम सिंह ने अपने पसंदीदा चरखा दाव का राजनीति में भी खूब इस्तेमाल किया।

पहले शिक्षक बने फिर राजनीति में उतरे

इंदिरा गांधी लिटिल गर्ल से देवी दुर्गा तक

इंदिरा की कहानी इलाहाबाद के आनंद भवन में पैदा हुई एक ऐसी लड़की के बारे में है, जिसने लोकप्रियता और लोकतंत्र दोनों को एक साथ साधा और तमाम महारथियों को धूल चटा दी हुई देश की राजनीति के शिखर पर पहुंची। भारतीय राजनीति में एक समय था जब राम मनोहर लोहिया ने उन्हें गूंगी गुड़िया कहा था और मुरारजी देसाई उन्हें लिटिल गर्ल मान रहे थे कॉमन अगर देश में इंदिरा की ऐसी लहर उठी कि सब के कयास और कथित अनुभवी आकलन तिनके की तरह बह गए। जन संघ के नेता अटल बिहारी बाजपेई ने उन्हें दुर्गा कह कर सम्मानित किया।

जवाहरलाल नेहरू आधुनिक भारत के वास्तुकार

पंडित जवाहरलाल नेहरू को जो भारत मिला कोमा उसकी जटिलताओं को देखते हुए दुनिया के तमाम विशेषज्ञ यह कह रहे थे कि मुल्क एक नहीं रह पाएगा। मगर नेहरू ने न केवल देश को एकजुट रखा बल्कि उसे अपने पैरों पर खड़ा भी किया। उन्होंने उस गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी, जिसने शीत युद्ध में फंसी दुनिया को एक नई राजनीति दी पुलिस टॉप विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर नेहरु चाहते तो अपनी लोकप्रियता के चलते तानाशाह भी बन सकते थे कोमा लेकिन उन्होंने लोकतंत्र का लंबा रास्ता चुना।

पंडित नेहरू का सफरनामा

कांशी राम दलितों को सत्ता का सेहरा पहनाया

कांशी राम भारतीय राजनीति की वह शख्सियत हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक कौशल से उत्तर प्रदेश की सियासत की धारा को ही उलट कर रख दिया। दलितों के उद्धार को लेकर उन्होंने वह काम किया, जो आज तक कोई समाज सुधारक नहीं कर पाया। उन्होंने दलित समाज के संपन्न तबके को इकट्ठा किया और दलितों को सक्रिय राजनीति में लाकर सरकार बनाने की स्थिति में ला खड़ा किया, जिसके बारे में यह समाज पहले कभी सोच भी नहीं सकता था। इस महान इंसान के संघर्ष को मासिक और सफलता के बारे में बता रहे हैं।

1971 मैं अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक कर्मचारी महासंघ की स्थापना की।

कल्याण सिंह मंडल और कमंडल का साझा चेहरा

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को अगर किसी ने सत्ता का स्वाद चखा या तो वह कल्याण सिंह थे। इन्होंने पार्टी को गठबंधन की राजनीति का पहला पाठ पढ़ाया। अखाड़ों में शारीरिक कौशल दिखा चुके सिंह ने राजनीतिक में भी अपने विरोधियों को चित किया। कल्याण सिंह के रूप में भाजपा को एक ऐसा चेहरा मिल गया था, जिसने सोशल इंजीनियरिंग वह हिंदुत्व दोनों को एक साथ साधा।

1980 में उत्तर प्रदेश भाजपा के महासचिव बने।

1984 में भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष चुने गए।

सांप्रदायिक हिंसा बिल आज संसद में!

नरेंद्र मोदी के जोरदार विरोध के बाद सरकार ने बिल के कुछ प्रावधानों में बदलावों को स्वीकार किया है। अब इसे कम्युनिटी न्यूट्रल बनाया गया है...

विशेष संवाददाता, नई दिल्ली  17 Dec 2013, 02:40:00 PM IST

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