सांप्रदायिक हिंसा बिल आज संसद में!

नरेंद्र मोदी के जोरदार विरोध के बाद सरकार ने बिल के कुछ प्रावधानों में बदलावों को स्वीकार किया है। अब इसे कम्युनिटी न्यूट्रल बनाया गया है...

विशेष संवाददाता, नई दिल्ली  17 Dec 2013, 02:40:00 PM IST
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सोमवार को हुई कैबिनेट कमिटी की मीटिंग में सांप्रदायिक हिंसा रोकने के विधेयक को मंजूरी दी गई। इसे मंगलवार को लोकसभा में पेश किया जा सकता है। बीजेपी नेता नरेंद्र मोदी के जोरदार विरोध के बाद सरकार ने बिल के कुछ प्रावधानों में बदलावों को स्वीकार कर लिया है। अब इसे कम्युनिटी न्यूट्रल यानी समुदायों के प्रति तटस्थ बनाया गया है। पहले प्रस्ताव था कि प्रभावित इलाके में बहुसंख्यक समुदाय को ही हिंसा का जिम्मेदार माना जाएगा। हिंसा से निपटने में विधायिका की भूमिका को भी कम कर दिया गया है। हिंसा की स्थिति में केंद्र के सीधे दखल के प्रस्ताव को नरम बना दिया गया है। अब राज्य चाहे तो हालात से निपटने के लिए सेना आदि की मांग केंद्र से कर सकेगा।

प्रस्तावित विधेयक में ये कहा गया था

- प्रिवेंशन ऑफ कम्यूनल वॉयलेंस (एक्सेस टु जस्टिस ऐंड रिप्रेजेंटेशंस) बिल 2013 का मकसद केंद्र, राज्य और उनके अधिकारियों को सांप्रदायिक हिंसा को ट्रांसपेरेंसी के साथ रोकने के लिए जिम्मेदार बनाना है। इस कानून के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे शेड्यूल्ड कास्ट, शेड्यूल्ड ट्राइब्स, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की गई हिंसा को रोकने, नियंत्रित करने के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करें।

- कोई भी व्यक्ति जो अकेले, किसी संस्था का हिस्सा बनकर या किसी संस्था के प्रभाव में किसी खास धार्मिक या भाषाई पहचान वाले 'ग्रुप' के खिलाफ गैरकानूनी ढंग से हिंसा, धमकी या यौन उत्पीड़न में शामिल होता है तो वह संगठित सांप्रदायिक हिंसा का आरोपी होगा। बिल में ग्रुप की जो परिभाषा दी गई है, उसका मतलब धार्मिक या भाषाई तौर पर अल्पसंख्यकों से है। इस कानून के जरिए हेट प्रोपेगैंडा, कम्युनल वॉयलेंस के लिए फंडिंग, उत्पीड़न और पब्लिक सर्वेंट्स द्वारा ड्यूटी को न निभाना भी अपराध की श्रेणी में लाया गया है।

- ब्यूरोक्रेट्स और पब्लिक सर्वेंट्स के दंगों से निपटने के दौरान चूक के प्रति उन्हें जवाबदेह बनाया गया है। दंगों को कंट्रोल करने या रोकने में नाकाम रहने पर एफआईआर दर्ज की जा सकती है। अधिकारियों द्वारा एक खास धार्मिक या भाषाई पहचान वाले ग्रुप के खिलाफ जानबूझकर पीड़ा पहुंचाए जाने की स्थिति में जुर्माने का प्रावधान भी है। जूनियरों, सहयोगियों द्वारा दंगों को रोकने में नाकामी की स्थिति में या फोर्सेज को ठीक ढंग से सुपरवाइज न करने की स्थिति में सीनियर अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई है।

- संगठित सांप्रदायिक हिंसा के लिए उम्रकैद, जबकि नफरत भरा प्रचार फैलाने के लिए 3 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। ड्यूटी ठीक से न निभाने के लिए 2 से 5 साल तक की कैद और आदेश के उल्लंघन की दशा में 10 साल तक की सजा तय की गई है। मृत शख्स के करीबियों को 7 लाख रुपये का मुआवजा का प्रवधान।

इसलिए हो रहा था विरोध

इस बिल के प्रावधानों को लेकर बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिख चुके हैं। यूपीए को समर्थन देने वाली पार्टियां एसपी और बीएसपी भी इससे राज्यों के अधिकार में दखल पड़ने का अंदेशा जता चुकी हैं। तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु की एआईएडीएमके और ओडिशा की बीजेडी ने भी इस तरह की शंका जताई थी।

- बीजेपी ने बिल के ओरिजिनिल ड्रॉफ्ट पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह बिल बहुसंख्यक समाज के खिलाफ है और राज्यों की शक्तियों में दखल देने वाला है। पार्टी के मुताबिक, केंद्र उन मुद्दों पर कानून बना रहा है जो राज्य के अधिकारों की जद में आता है। सांप्रदायिक हिंसा को कानून-व्यवस्था का मामला माना जाता है, जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है।

- मोदी का कहना था कि यह बिल धार्मिक और भाषाई आधार पर समाज को बांटने वाला है क्योंकि इससे धार्मिक और भाषाई पहचान हमारे समाज में मजबूत हो चलेगी और आसानी से हिंसा के साधारण घटना को भी सांप्रदायिक रंग दिया जा सकेगा। यह कानून धार्मिक और भाषाई पहचान वाले नागरिकों के लिए आपराधिक कानूनों को अलग-अलग ढंग से अप्लाई करने का मौका दे सकता है।

- बिल के ब्रीच ऑफ कमांड रिस्पॉन्सिबिलिटी के प्रावधान के मुताबिक, एक पब्लिक सर्वेंट को उसके मातहतों की नाकामी के लिए सजा का प्रावधान है। बीजेपी का कहना था कि इसकी वजह से सीनियर अधिकारी आपराधिक उत्तरदायित्व के डर से दखल देने से दूरी बनाए रखेंगे और जूनियरों को फील्ड में अपनी हालत पर छोड़ देंगे। साथ ही अधिकारियों को राजनीतिक तौर पर निशाना बनाए जाने की कोशिशों को बल मिलेगा।

- दंगों के पीड़ित अल्पसंख्यक समूह धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। इसके तहत अनुसूचित जाति-जनजाति समूहों की रक्षा के उपाय भी हैं। देखा जाए तो सैद्धांतिक रूप में जहां हिंदू अल्पसंख्यक होंगे, वहां उन्हें इस कानून का लाभ मिलेगा, लेकिन उन इलाकों में जहां अन्य समुदाय और इनका अंतर ज्यादा नहीं है, किस तरह से कार्रवाई होगी, यह स्पष्ट नहीं है।

- एक से अधिक अल्पसंख्यक 'समूहों' के बीच टकराव की स्थिति में क्या होगा, इस बारे में बिल कोई साफ तौर पर नजरिया पेश नहीं करता। बीजेपी इस बिल को लेकर प्रमुख तौर पर दलील दे रही है कि इस बिल से ऐसा इंप्रेशन पड़ेगा कि सांप्रदायिक हिंसा केवल बहुसंख्यक वर्ग ही करता है।

- बिल की धारा-6 में साफ किया गया है कि इसके अंतर्गत एससी, एसटी के खिलाफ हुआ अपराध उन अपराधों के अलावा है जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अधीन आते हैं। बिल के विरोधियों का कहना है कि क्या एक ही अपराध के लिए दो बार सजा दी जा सकती है?

- कुछ आलोचकों का कहना है कि धारा 7 के मुताबिक, दंगों के हालत में अगर बहुसंख्यक समुदाय से जुड़ी महिला के साथ अगर रेप होता है तो यह इस बिल के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा क्योंकि बहुसंख्यक महिला 'ग्रुप' की डेफिनिशन में नहीं आएगी।

source:navbharattimes