कल्याण सिंह मंडल और कमंडल का साझा चेहरा

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को अगर किसी ने सत्ता का स्वाद चखा या तो वह कल्याण सिंह थे। इन्होंने पार्टी को गठबंधन की राजनीति का पहला पाठ पढ़ाया। अखाड़ों में शारीरिक कौशल दिखा चुके सिंह ने राजनीतिक में भी अपने विरोधियों को चित किया। कल्याण सिंह के रूप में भाजपा को एक ऐसा चेहरा मिल गया था, जिसने सोशल इंजीनियरिंग वह हिंदुत्व दोनों को एक साथ साधा।

1980 में उत्तर प्रदेश भाजपा के महासचिव बने।

1984 में भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष चुने गए।

1989 में उत्तर प्रदेश विधानमंडल में भाजपा के नेता बने।

1991 से 6 दिसंबर 1992 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

1967 से 2002 तक लगातार अतरौली सीट से विधायक रहे।

1980 में सिर्फ एक बार कांग्रेस प्रत्याशी अनवर खान से चुनाव हारे।

1967 में पहली बार यूपी की अतरौली सीट से जनसंघ के प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा चुनाव जीते।

1993 में उत्तर प्रदेश के अतरौली कासगंज से विधायक निर्वाचित हुए।

1997 से 12 नवंबर 1999 तक दोबारा यूपी के सीएम रहे।

2009 में यूपी के एटा सीट से लोकसभा पहुंचे।

2014 से 8 सितंबर 2019 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे।

2021 में अगस्त महीने की 21 तारीख को दुनिया को अलविदा कह दिया।