हुई जीएमसी में डॉक्टर्स की आपस में लड़ाई, कुछ ने सरकारी नौकरी में रहने के बाद भी तीसरी संतान होने की छिपाई जानकारी, बच निकले जांच में भी

बता  दे कि सरकार की तरफ से यह नियम आया  था  कि यदि आपके तीन बच्चे हैं तो आप सरकारी नौकरी नहीं कर सकते हैं। इस नियम को लेकर गांधी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स के बीच विवाद शुरू हुआ था। करीब ढाई साल चली लंबी लड़ाई के बाद छह डॉक्टर्स की 26 जनवरी 2001 या उसके बाद तीन-तीन संतान होने और ये जानकारी विभाग से छिपाने के मामले में बनी जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन के हवाले कर दी है।

इस रिपोर्ट के आधार पर सभी डॉक्टर्स को नौकरी के लिए पात्र पाया गया है। हालांकि इन डॉक्टर्स ने खुद के बचाव के लिए कई तरह के बहाने बनाए हैं। किसी ने कहा कि उनकी पत्नी ने प्रेग्नेंसी की जानकारी तीन महीने बाद दी, तो कोई बोला- मेरी नसबंदी फेल हो गई।इन तर्कों को जांच कमेटी ने सही माना और हाईकोर्ट के एक फैसले को आधार बनाते हुए सभी को नौकरी पर बरकरार रखा। लेकिन इस रिपोर्ट पर अन्य डॉक्टर्स सवाल खड़े कर रहे हैं। मामले में कॉलेज के डीन डॉ. जितेंद्र शुक्ला का कहना है कि रिपोर्ट कॉन्फिडेंशियल है, इस पर कुछ नहीं कहूंगा।

 सरकारी सेवक, जिनके दो से ज्यादा बच्चे हों, जिनमें से एक का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद हुआ हो, वो नौकरी के लिए पात्र नहीं ।  हाईकोर्ट के उस फैसले का हवाला देकर बरी किया, जिसमें कहा गया था कि संबंधित डॉक्टर की नौकरी के लिए जारी विज्ञापन में ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि 3 संतान होने पर उसे अयोग्य करार दिया जाएगा। 

2005 में गांधी मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबॉयलॉजी डिपार्टमेंट से असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी ज्वाइन की थी, हालांकि इसके पहले ही उनके तीन बच्चे थे। जांच कमेटी को उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए जो विज्ञापन निकला था, उसमें तीन बच्चों की शर्त का उल्लेख नहीं था। इसलिए उन्होंने नौकरी के समय नहीं बताया कि हमारे तीन बच्चे हैं। पति की नसबंदी फेल हो गई थी। 

न्यूरो सर्जन हैं। उन्होंने जीएमसी से संबद्ध हमीदिया अस्पताल में सन् 2000 में नौकरी ज्वाइन की थी। जबकि 2003 तक उनके तीन बच्चे हुए। उनके नौकरी में होने के दौरान तीन बच्चे होने की शिकायत हुई थी। जांच कमेटी को दिए बयान में उन्होंने कहा कि 2002 में उन्होंने नसबंदी कराई थी, जिसका प्रमाण पत्र दिया गया है। लेकिन ये नसबंदी फेल हो गई।

16 दिसंबर 2002 में निश्चेतना विभाग में प्राध्यापक बने। पहली संतान 12 फरवरी 1996, दूसरी 25 फरवरी 2001 और तीसरी 13 जून 2018 को हुई। जांच कमेटी को कहा कि तीसरा बच्चा न हो, इसके लिए सारे उपाए किए गए थे, लेकिन अचानक से पत्नी ने बताया कि उसको तीन महीने की प्रेग्नेंसी है। डॉक्टर्स से जांच कराई तो उन्होंने अवॉर्शन की मंजूरी नहीं दी।

प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पीडियाट्रिक विभाग में हैं। 2001 के बाद उनका तीसरा बच्चा हुआ। उन्होंने कमेटी को तर्क दिया था कि पत्नी मायके गई हुई थी। उसे रेगुलर मासिक धर्म देर से आया। जब तक हम लोगों को पता चलता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टर से जब सलाह ली, तो उन्होंने बताया कि देर हो गई है, इसलिए तीसरी संतान को जन्म दिया।

ये वर्तमान में डर्मेटोलॉजी डिपार्टमेंट में सहायक प्राध्यापक हैं। उनके भी तीन बच्चे हैं। 2001 के बाद उनका तीसरा बच्चा हुआ। उनको भी ये नहीं मालूम था कि तीसरी संतान उनकी पत्नी के पेट में आ चुकी है। न ही नौकरी के समय इस बात का जिक्र किया गया था। उन्होंने कमेटी को तर्क दिया था कि उन्होंने सुरक्षा के सारे प्रिकॉशन लिए थे, फिर भी पत्नी को प्रेगनेंसी हो गई।

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