कमलापति त्रिपाठी, धर्म के साथ ही राजनीति के भी पंडित

उनका नाम देश के स्वतंत्रता संग्राम और तुरंत बाद की उन राजनीतिक हस्तियों में आता है, जिन्होंने 20 वी सदी में जन्म लिया और यूपी की सियासत पर लगभग सदी के अंत तक असर डाला। आज हम भले ही भारतीय राजनीति के केंद्र में एक बार फिर वाराणसी को देख रहे हो, लेकिन यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने यह काम को पहले कर दिया था। कमलापति त्रिपाठी को प्रदेश की राजनीति में कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनकी राजनीति जीविता को कमलबद्व कर रहे हैं वरिष्ठ प्रकार हरिचंद्रष...

कमल पति त्रिपाठी का सफरनामा

कमलापति त्रिपाठी का जन्म 3 सितंबर 1950 को हुआ था। उनके पिता का नाम नारायणपति त्रिपाठ था। मूल रूप से वह पंडित के त्रिपाठी परिवार से थे। मुगल बादशाह और अंग्रेज के जमाने में ही उनके पूर्वज वाराणसी में बस गए थे। उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि एवं डिलीट किया। उन्होंने हिंदी अखबार आज और संसार में एक प्रकार के रूप में काम किया तब जब वे जेल में थे तो उन्होंने वहीं से एक हस्तलिखित अखबार कारागार भी निकाला था।

1921 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया।

1930 मैं सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल गए।

1937 मैं पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।

1942 मैं भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए मुंबई गए, कमा उन्हें गिरफ्तार किया गया और 3 साल तक जेल में रहे।

1946,1952,1957,1962,
1967 एवं 1969 यूपी विधानसभा के सदस्य निर्वाचित।

1969 से 17 फरवरी 1970 तक यूपी के उपमुख्यमंत्री रहे।

1971 से 12 जून, 1973 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

1973 से 1978,1978 से 1980 और 1995 से 1986 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे।

1973 से 1977 तक महाजन रानी परिवहन एवं रेल मंत्री रहे।

1980 में वाराणसी लोकसभा सीट से वह सांसद चुने गए।

1990 में अक्टूबर महीने की 8 तारीख को वाराणसी में उनका देहांत हुआ।