पंडित जवाहरलाल नेहरू को जो भारत मिला कोमा उसकी जटिलताओं को देखते हुए दुनिया के तमाम विशेषज्ञ यह कह रहे थे कि मुल्क एक नहीं रह पाएगा। मगर नेहरू ने न केवल देश को एकजुट रखा बल्कि उसे अपने पैरों पर खड़ा भी किया। उन्होंने उस गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी, जिसने शीत युद्ध में फंसी दुनिया को एक नई राजनीति दी पुलिस टॉप विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर नेहरु चाहते तो अपनी लोकप्रियता के चलते तानाशाह भी बन सकते थे कोमा लेकिन उन्होंने लोकतंत्र का लंबा रास्ता चुना।
पंडित नेहरू का सफरनामा
पंडित नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) मैं हुआ था। वहां एक राजनीतिज्ञ होने के साथ ही एक बैरिस्टर और लेखक भी थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई लंदन के कैबरे विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज से की। वे आधुनिक भारत के समय समाजवादी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणतंत्र को वास्तुकार माने जाते हैं। कश्मीरी पंडित होने की वजह से पंडित नेहरू भी बुलाए जाते थे कोमा जबकि बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं।
1912 महात्मा गांधी से प्रभावित होकर वे कांग्रेस से जुड़े।
1920 में 1922 में असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
1926 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव रहे।
1929 मैं पहली बार पंडित नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
1930 में नमक आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए और छह माह जेल में बिताए।
1936 और 1937 मैं नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुने गए।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया और 1945 मैं उन्हें रिहा किया गया।
1947 में देश के पहले प्रधानमंत्री बने और 1964 तक इस पद पर बने रहे।
1974 में भारत और पाकिस्तान की आजादी के समय उन्होंने ब्रिटिश सरकार के साथ हुई वार्ताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1952 में यूपी की फूलपुर सीट से पहला लोकसभा चुनाव जीते ।
1955 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
1964 में मई माह की 27 तारीख को दिल का दौरा पड़ने से देश में इस महान राजनेता का निधन हो गया।