कांशी राम भारतीय राजनीति की वह शख्सियत हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक कौशल से उत्तर प्रदेश की सियासत की धारा को ही उलट कर रख दिया। दलितों के उद्धार को लेकर उन्होंने वह काम किया, जो आज तक कोई समाज सुधारक नहीं कर पाया। उन्होंने दलित समाज के संपन्न तबके को इकट्ठा किया और दलितों को सक्रिय राजनीति में लाकर सरकार बनाने की स्थिति में ला खड़ा किया, जिसके बारे में यह समाज पहले कभी सोच भी नहीं सकता था। इस महान इंसान के संघर्ष को मासिक और सफलता के बारे में बता रहे हैं।
1971 मैं अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक कर्मचारी महासंघ की स्थापना की।
1981 में एक सामाजिक संगठन बनाया, जिसे दलित शोषित समाज संघर्ष समिति के नाम से जाना जाता है।
1982 में उन्होंने द चमचा युग नाम की पुस्तक लिखी।
1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। इसी वर्ष उन्होंने मध्यप्रदेश अपना पहला चुनाव लड़ा। हालांकि वह हार गए थे।
1984 में अविभाजित मध्यप्रदेश की जांजगीर चंपा सीट से पहला चुनाव लड़ा।
1988 में वीपी सिंह के खिलाफ इलाहाबाद सीट से चुनाव लड़ा लेकिन यहां उन्हें शिकस्त मिली।
1991 में यूपी की इटावा सीट से सांसद बने।
1996 में पंजाब की होशियारपुर सीट से लोकसभा सांसद चुने गए।
कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रूपनगर जिले के ग्राम पृथ्वीपुर बूंगा में हुआ। उन्होंने भारतीय वर्ण व्यवस्था में बहुत जनों के राजनीतिक की तरंग तथा उत्थान के लिए काम किया। उन्होंने पूरा जीवन दलितों और पिछड़ों के हक के लिए लड़ाई लड़ी फुलस्टॉप उनकी यह लड़ाई काफी हद तक कामयाब भी रही।
9 अक्टूबर 2006 को दिल्ली में उनका निधन हुआ। निधन के पूर्व में मायावती को बसपा की कमान सौंप गए थे। उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार कांशी राम से किसी ने पूछा कि आप कैसा समाज चाहते हैं? उन्होंने अपने फाउंटेन पेन को पलटा और कहा ऐसा। अर्थात ही जिधर जा रही थी उसके विपरीत। यह एक संकेत था कांग्रेस के परंपरागत हरिजन उधार कार्यक्रम को एकदम उलट देने का।