
इस साल सावन मास की पूर्णिमा 11 अगस्त को 10 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो रही है। इसी समय से भद्रा भी लग रही है जो रात 08 बजकर 53 मिनट पर समाप्त होगी। 11 अगस्त को भद्रा समाप्त होने पर रात 08 बजकर 54 मिनट से रात 09 बजकर 49 मिनट तक राखी बांध सकते हैं। लेकिन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, सूर्यास्त के बाद राखी बांधना वर्जित है। इस कारण से 12 अगस्त को राखी का त्योहार शुभ रहेगा। अक्सर हिन्दू त्योहार में यही शंका रहती हैं कि कब मनाएं क्योंकि तिथि दो दिन पड़ गई और फिर विद्वानों में मतभेद भी हो जाते हैं। शैव सम्प्रदाय और वैष्णव सम्प्रदाय दोनो अपने अपने मत रखते हुए अपने अनुसार त्योहार मनाते हैं।
उदयातिथि पर मनाएं रक्षाबंधन
ज्योतिषाचार्य मनोज कुमार द्विवेदी जी के अनुसार 11 को भद्रा पाताल लोक में होगी तो 11 को मना सकते है लेकिन कोई भी त्योहार उदया तिथि को ही मनाना चाहिए। शास्त्र भी उदया तिथि को सही बताते है जो तिथि सूर्योदय के बिना उदित हो वह उचित नही है, इसलिए 12 को रक्षा बंधन मनाना चाहिए। बहुत से विद्वानगण 11 अगस्त को रक्षाबंधन बता रहे हैं।
रक्षा बंधन रक्षा के संकल्प का पर्व
रक्षाबंधन का त्योहार प्रेम के साथ स्नेहबंधन व रक्षा के संकल्प भाव को लेकर आता है। यह त्योहार राखी यानी रक्षा सूत्र बिना पूरा नहीं होता और यह राखी रूपी रक्षासूत्र तब अधिक प्रभावशाली हो जाता है,जब यह मंत्रों के साथ बांधा जाता है। रक्षासूत्र बांधने का प्रसिद्ध मंत्र है - "येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।"
इस मंत्र का अर्थ इसकी कथा में छिपा हुआ है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है | वामन पुराण के अनुसार, एक बार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग में उनका सब कुछ ले लिया, तब राजा ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा वरदान में बलि ने भगवान विष्णु को पाताल में उनके साथ रहने का आग्रह किया। भगवान विष्णु को वरदान के कारण पाताल में जाना पड़ा। इससे देवी लक्ष्मी को बड़ी परेशानी हुई। लक्ष्मी जी भगवान विष्णु को राजा बलि से मुक्त करवाने के लिए वेश बदलकर पाताल पहुंच गई और देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को भाई बना लिया और एक रक्षासूत्र बलि के कलाई में बांध दिया।
क्यों बना रक्षासूत्र का मंत्र
राजा बलि ने जब देवी लक्ष्मी से कुछ मांगने के लिए कहा, तब मांगस्वरूप देवी लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को पाताल से बैकुंठ जाने के लिए कहा तो बहन की बात रखने के लिए बलि ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी को बैकुंठ विदा कर दिया। तब भगवान विष्णु ने बलि को यह वरदान दिया कि चातुर्मास्य की अवधि में वे पाताल में आकर निवास करेंगे। इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं। इस घटना को स्मरण रखने के लिए ही रक्षासूत्र का मंत्र बना। इस मंत्र का अर्थ है कि "जिस रक्षासूत्र से महान शक्ति शाली दानवेंद्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें भी बांधता हूं /बांधती हूं | हे रक्षे (रक्षासूत्र)! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना |
रक्षाबंधन के पर्व पर व्यापक संदेश निहित
रक्षाबंधन के पर्व पर अपने परंपरागत मूल्यों से उर्जा ग्रहण करते हैं और उससे अपने जीवन को अनुप्राणित करते हैं | रक्षा करने का भाव एक ऐसा भाव है, जो हमें अपने कर्त्तव्य को निभाने की प्रेरणा तो देता ही है, वहीं दूसरों को भी निर्भयता प्रदान करने की स्वतंत्रता देता है। रक्षाबंधन का त्योहार हालांकि भाई-बहन के प्रेमपूर्ण संबंधों और भाई द्वारा बहन की रक्षा के संकल्प तक ही सीमित रह गया है, लेकिन इस त्योहार के पीछे व्यापक संदेश निहित है। इसमें बहन की रक्षा, परिवार की रक्षा, समाज की रक्षा, देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा और अपनी संस्कृति की रक्षा आदि भाव सम्मिलित हैं। रक्षाबंधन शब्द में प्रयुक्त बंधन शब्द किसी संकल्प से बंधे हुए होने का सूचक है, लेकिन यह अत्यंत सकारात्मक भाव को लिए हुए है। अच्छे प्रयोजन के लिए स्वयं को या किसी को बंधन में बांधना-निजी स्वतंत्रता का सूचक है। यह हमारी आत्मिक स्वतंत्रता की ओर इंगित करता है। रक्षाबंधन हमें यह स्वतंत्रता देता है कि हम इस दायित्व बोध के योग्य बनें, ताकि हम अपने पराक्रम व अपनी प्रतिभा द्वारा दूसरों की रक्षा कर सकें।
रक्षाबंधन का संबंध रक्षा करने से
बहन अपने भाई को जो रक्षासूत्र बांधती है, तो इसके माध्यम से भाई उसे अभय प्रदान करता है और इससे बहन स्वतंत्रता का अनुभव करती है। देश के हमारे सैनिक भी देश की रक्षा का संकल्प लेकर उसे अभय प्रदान करते हैं। हमारे पौराणिक आख्यानों में रक्षाबंधन का संबंध रक्षा करने से ही है। यह कोई जरूरी नहीं कि भाई-बहन के मधुर रिश्ते केवल पारिवारिक संबंधों में ही पनपते हैं बल्कि परिवार के दायरे से बाहर जाकर भी ये रिश्ते पनपते हैं और अपना महत्व दर्शाते हैं। इस तरह रक्षाबंधन का पर्व समाज में एक दिव्य और पवित्र वातावरण का निर्माण कर देता है। तो आइए इस महान पर्व पर सब मिलकर एक ऐसा संकल्प लें जिसमें अपनी बहनों की रक्षा , अपने देश की रक्षा, अपनी प्रकृति की रक्षा, अपने सद्गुणों की रक्षा हम कर सकें। यही इस महान पर्व का मूलभूत उद्देश्य भी है।
source: amarujala